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Sunday, December 9, 2018

मैं तुम्हारी रूह की अंगड़ाइयों से

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मैं तुम्हारी रूह की अंगड़ाइयों से आश्ना हूँ
मैं तुम्हारी धड़कनों के ज़ेर-ओ-बम पहचानता हूँ
मैं तुम्हारी अँखड़ियों में नर्म लहरें जागती सी देखता हूँ
जैसे जादू जागता हो
तुम अमर हो तो लचकती टहनियों की मामता हो

तुम जवानी हो तबस्सुम हो मोहब्बत की लता हो
मैं तुम्हें पहचानता हूँ तुम मिरी पहली ख़ता हो
लहलहाती झूमती फुलवारियों की ताज़गी हो बे-अदाई की अदा हो
तेज़ मंडलाती अबाबीलों के नन्हे बाज़ुओं का हौसला हो
फूल हो और फूल के अंजाम से ना-आश्ना हो

डालियों पर फूलती हो झूलती हो देखती हो भूलती हो
हर नए फ़ानूस पे गिरती हुई परवानगी हो
और ख़ुद भी रौशनी हो
ज़िंदगी हो ज़िंदगी के गिर्द चक्कर काटती हो
मैं तुम्हें पहचानता हूँ तुम मोहब्बत चाहती हो
ख़ुद को देखो और भरी दुनिया को देखो और सोचो
और सोचो तुम कहाँ हो

*ज़ेर-ओ-बम=ऊँचाई और नीचाई; मामता=मातृत्व; अबाबील=छोटी चिड़िया;

~ महबूब ख़िज़ां


 Dec 09, 2018 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

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