चलो घर चलें चाँद छुपने लगा है
समुंदर भी लगता है सोने चला है
हवाओं की रफ़्तार थम सी गई है
न आएगा कोई सहर हो चली है
न अब पास में कोई पत्थर बचा है
न अब बाज़ुओं में असर रह गया है
सड़क की सभी रौशनी बुझ गई है
अंधेरा हटा राह दिखने लगी है
न आहट है कोई न कोई भरम है
थकी आरज़ू और बोझल क़दम है
नज़र पर बग़ावत असर कर रही है
ज़मीं भीग कर तर-ब-तर हो चली है
चलो घर चलें चाँद छुपने लगा है
~ विनोद कुमार त्रिपाठी 'बशर'
अंधेरा हटा राह दिखने लगी है
न आहट है कोई न कोई भरम है
थकी आरज़ू और बोझल क़दम है
नज़र पर बग़ावत असर कर रही है
ज़मीं भीग कर तर-ब-तर हो चली है
चलो घर चलें चाँद छुपने लगा है
~ विनोद कुमार त्रिपाठी 'बशर'
Mar 06, 2019 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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