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Sunday, March 10, 2019

चलो घर चलें चाँद छुपने लगा है


चलो घर चलें चाँद छुपने लगा है
समुंदर भी लगता है सोने चला है
हवाओं की रफ़्तार थम सी गई है
न आएगा कोई सहर हो चली है
न अब पास में कोई पत्थर बचा है
न अब बाज़ुओं में असर रह गया है



सड़क की सभी रौशनी बुझ गई है
अंधेरा हटा राह दिखने लगी है
न आहट है कोई न कोई भरम है
थकी आरज़ू और बोझल क़दम है
नज़र पर बग़ावत असर कर रही है
ज़मीं भीग कर तर-ब-तर हो चली है

चलो घर चलें चाँद छुपने लगा है

~ विनोद कुमार त्रिपाठी 'बशर'

 Mar 06, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

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