ये रौशनी है हक़ीक़त में एक छल लोगो
कि जैसे जल में झलकता हुआ महल लोगो
दरख़्त हैं तो परिंदे नज़र नहीं आते
वो मुस्तहिक़ हैं वही हक़ से बे-दख़ल लोगो
* मुस्तहिक़=हक़दार
वो घर में मेज़ पे कुहनी टिकाए बैठे हैं
थमी हुई है वहीं उम्र आज-कल लोगो
किसी भी क़ौम की तारीख़ के उजाले में
तुम्हारे दिन हैं किसी रात की नक़ल लोगो
तमाम रात रहा महव-ए-ख़्वाब दीवाना
किसी की नींद में गड़ता रहा ख़लल लोगो
ज़रूर वो भी इसी रास्ते से गुज़रे हैं
हर आदमी मुझे लगता है हम-शकल लोगो
दिखे जो पावँ के ताज़ा निशान सहरा में
तो याद आए हैं तालाब के कँवल लोगो
वे कह रहे हैं ग़ज़ल-गो नहीं रहे शाएर
मैं सुन रहा हूँ हर इक सम्त से ग़ज़ल लोगो
~ दुष्यंत कुमार
कि जैसे जल में झलकता हुआ महल लोगो
दरख़्त हैं तो परिंदे नज़र नहीं आते
वो मुस्तहिक़ हैं वही हक़ से बे-दख़ल लोगो
* मुस्तहिक़=हक़दार
वो घर में मेज़ पे कुहनी टिकाए बैठे हैं
थमी हुई है वहीं उम्र आज-कल लोगो
किसी भी क़ौम की तारीख़ के उजाले में
तुम्हारे दिन हैं किसी रात की नक़ल लोगो
तमाम रात रहा महव-ए-ख़्वाब दीवाना
किसी की नींद में गड़ता रहा ख़लल लोगो
ज़रूर वो भी इसी रास्ते से गुज़रे हैं
हर आदमी मुझे लगता है हम-शकल लोगो
दिखे जो पावँ के ताज़ा निशान सहरा में
तो याद आए हैं तालाब के कँवल लोगो
वे कह रहे हैं ग़ज़ल-गो नहीं रहे शाएर
मैं सुन रहा हूँ हर इक सम्त से ग़ज़ल लोगो
~ दुष्यंत कुमार
Sep 1, 2019 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment