नई ज़मीन नया आसमाँ तलाश करो
जो सत्ह-ए-आब पे हो वो मकाँ तलाश करो
*सत्ह-ए-आब=पानी की सतह पर
नगर में धूप की तेज़ी जलाए देती है
नगर से दूर कोई साएबाँ तलाश करो
*साएबाँ=मंडप
ठिठुर गया है बदन सब का बर्फ़-बारी से
दहकता खोलता आतिश-फ़िशाँ तलाश करो
*आतिश-फिशाँ=आग बरसाने वाला
हर एक लफ़्ज़ के मा'नी बहुत ही उथले हैं
इक ऐसा लफ़्ज़ जो हो बे-कराँ तलाश करो
*बे-कराँ=असीमित
बहुत दिनों से कोई हादिसा नहीं गुज़रा
किसी के ताज़ा लहू का निशाँ तलाश करो
हर एक के राज़ से वाक़िफ़ हो कह रहे हैं सभी
मिरे बदन में कोई दास्ताँ तलाश करो
~ असअ'द बदायुनी
Sep 18, 2019 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment