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Saturday, March 14, 2020

दास्ताँ वस्ल की इक बात से


दास्ताँ वस्ल की इक बात से आगे न बढ़ी
आप की शिकवा-शिकायत से आगे न बढ़ी

लाख रोती रही जलती रही अफ़्सोस मगर
ज़िंदगी शम्अ' की इक रात से आगे न बढ़ी

तू जफ़ा-केश रहा और में वफ़ा-कोश रहा
बात तेरी भी मिरी बात से आगे न बढ़ी
*जफ़ा-केश=जो वफ़ा में कच्चा हो; वफ़ा-कोश=प्रेम निर्वाह की कोशिश

यूँ तो आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बड़े दा'वे थे
दोस्ती पहली मुलाक़ात से आगे न बढ़ी
*आग़ाज़-ए-मोहब्बत=प्रेम की शुरुआत

मिल गए जब वही शिकवे वही क़िस्से 'असअद'
ये ख़ुराफ़ात ख़ुराफ़ात से आगे न बढ़ी

~ असअ'द बदायुनी


Mar 14, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

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