Disable Copy Text

Friday, March 13, 2020

अब सितारों में जवानी नहीं

 
अब सितारों में जवानी नहीं रक़्साँ कोई
चाँद के नूर में नग़्मात के सैलाब नहीं
दिल में बाक़ी नहीं उमडा हुआ तूफ़ाँ कोई
रूह अब हुस्न उचक लेने को बेताब नहीं

*रक़्साँ=नृत्य; सैलाब=बाढ़

अब फ़रोज़ाँ सी नहीं क़ौस-ए-क़ुज़ह की राहें
इन्ही राहों से उफ़ुक़ पार से घूम आते थे
मुंतज़िर अब नहीं फ़ितरत की गुलाबी बाहें
हम जिन्हें जा के शफ़क़-ज़ार से चूम आते थे

*फ़रोज़ाँ=रौशनी से भरी; क़ौस-ए-क़ुज़ह=इंद्रधनुष; उफ़ुक़=क्षितिज; मुंतज़िर=इंतज़ार; शफ़क़-ज़ार=उषा वर्ण

अब घटाओं में नहीं हौसले रिंदाना से
अब फ़ज़ाओं में हैं वलवले दीवाना से
रूह एहसास की तल्ख़ी से बुझी जाती है
ऐसे माहौल के ज़िंदाँ से रिहा कर मुझ को
वही पहले से हसीं ख़्वाब अता कर मुझ को

*रिंदाना=मतवालों; वलवले=ललक; ज़िंदाँ=जेल; अता=प्रदान

~ नज़ीर मिर्ज़ा बर्लास

Mar 13, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment