Disable Copy Text

Sunday, March 15, 2020

क्या हाल कहें उस मौसम का


क्या हाल कहें उस मौसम का
जब जिंस-ए-जवानी सस्ती थी
जिस फूल को चूमो खुलता था
जिस शय को देखो हँसती थी
जीना सच्चा जीना था
हस्ती ऐन हस्ती थी
अफ़्साना जादू अफ़्सूँ था
ग़फ़लत नींदें मस्ती थी
उन बीते दिनों की बात है ये
जब दिल की बस्ती बस्ती थी

*जिंस-ए-जवानी=जवानी जैसी; अफ़्सूँ=जादुई; ग़फ़लत=असावधानी, बेपरवाही

ग़फ़लत नींदें हस्ती थी
आँखें क्या पैमाने थे
हर रोज़ जवानी बिकती थी
हर शाम-ओ-सहर बैआ'ने थे
हर ख़ार में इक बुत-ख़ाना था
हर फूल में सौ मय-ख़ाने थे
काली काली ज़ुल्फ़ें थीं
गोरे गोरे शाने थे
उन बीते दिनों की बात है ये
जब दिल की बस्ती बस्ती थी

*बैआ'ने=बयाना

गोरे गोरे शाने थे
हल्की-फुल्की बाँहें थीं
हर-गाम पे ख़ल्वत-ख़ाने थे
हर मोड़ पे इशरत-गाहें थीं
तुग़्यान ख़ुशी के आँसू थे
तकमील-ए-तरब की आहें थीं
इश्वे चुहलें ग़म्ज़े थे
पल्तीं ख़ुशियाँ चाहीं थीं
उन बीते दिनों की बात है ये
जब दिल की बस्ती बस्ती थी

*ख़ल्वत=निजी, गुप्त; इशरत-गाह=मज़े करने की जगह; तकमील-ए-तरब=उन्माद की चीखें; इश्वे=शोख़; ग़म्ज़े=शरारती इशारे

~ जोश मलीहाबादी


Mar 15, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment