मर जाएँगे ज़ालिम की हिमायत न करेंगे
अहरार कभी तर्क-ए-रिवायत न करेंगे
*हिमायत=पक्षपात; अहरार=आज़ाद लोग; तर्क-ए-रिवायत=परम्परा से अलग जा कर कुछ करना
क्या कुछ न मिला है जो कभी तुझ से मिलेगा
अब तेरे न मिलने की शिकायत न करेंगे
शब बीत गई है तो गुज़र जाएगा दिन भी
हर लहज़ा जो गुज़री वो हिकायत न करेंगे
ये फ़क़्र दिल-ए-ज़ार का एवज़ाना बहुत है
शाही नहीं माँगेंगे विलायत न करेंगे
*फ़क़्र=ग़रीब; दिल-ए-ज़ार=व्यथित हृदय; एवज़ाना=हर्ज़ाना
हम शैख़ न लीडर न मुसाहिब न सहाफ़ी
जो ख़ुद नहीं करते वो हिदायत न करेंगे
*मुसाहिब=बड़े आदमियों के साथ बैठने वाला; सहाफ़ी=पत्रकार
~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Apr 21, 2019 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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