Disable Copy Text

Saturday, April 27, 2019

बरसों बैठ के सोचें फिर भी

Image may contain: plant and outdoor

बरसों बैठ के सोचें फिर भी
हाथ के आगे पड़ा निवाला
आप हल्क़ के पार न जाए
ये अदना नाख़ुन भी शायद
बढ़ते बढ़ते जाल बिछाए
ज्ञान नगर बेहद दिलकश है
लेकिन उस के रस्ते में जो ख़ार पड़े हैं
कौन हटाए

सदियों की सोचों का मुरक़्क़ा' (अलबम)
टूटे हुए उस बुत को देखो
हरे-भरे ख़ुद-रौ (निरंकुश) सब्ज़े (हरियाली) ने घेर रखा है
फ़र्क़ कुशादा (खुला हुआ) से चिड़ियों की याद-दहानी (याद दिलाना)
चाह-ए-ज़क़न (ठुड्ढी के डिम्पल) पे काई जमी है
हो सकता है शायद उस को ज्ञान मिला हो
हो सकता है

~ अबरारूल हसन

 Apr 27, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

No comments:

Post a Comment