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Saturday, July 20, 2019

रात मीठी चांदनी है

 
रात मीठी चांदनी है,
मौन की चादर तनी है।

एक चेहरा या कटोरा सोम मेरे हाथ में,
दो नयन या नखत वाले व्‍योम मेरे हाथ में,
प्रकृति कोई कामिनी है,
या चमकती नागिनी है।

रूप - सागर कब किसी की चाह में मैले हुए,
ये सुवासित केश मेरी बांह पर फैले हुए,
ज्‍योति में छाया बनी है,
देह से छाया घनी है।

वासना के ज्‍वार उठ-उठ चंद्रमा तक खिंच रहे,
ओंठ पाकर ओंठ मदिरा सागरों में सिंच रहे;
सृष्टि तुमसे मांगनी है,
क्‍योंकि यह जीवन ऋणी है।

वह मचलती-सी नजर उन्‍माद से नहला रही,
वह लिपटती बांह नस-नस आग से सहला रही,
प्‍यार से छाया सनी है,
गर्भ से छाया धनी है।

दामिनी की कसमसाहट से जलद जैसे चिटकता,
रौंदता हर अंग प्रतिपल फूटकर आवेग बहता।
एक मुझमें रागिनी है,
जो कि तुमसे जागनी है।

~ कुँवर नारायण

 Jul 20, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

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