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Saturday, July 27, 2019

अबकी अगर लौटा तो

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अबकी अगर लौटा तो
बृहत्तर लौटूँगा

चेहरे पर लगाए नोकदार मूँछें नहीं
कमर में बाँधे लोहे की पूँछें नहीं
जगह दूँगा साथ चल रहे लोगों को
तरेर कर न देखूँगा उन्हें
भूखी शेर-आँखों से

अबकी अगर लौटा तो
मनुष्यतर लौटूँगा
घर से निकलते
सड़कों पर चलते
बसों पर चढ़ते
ट्रेनें पकड़ते
जगह बेजगह कुचला पड़ा
पिद्दी-सा जानवर नहीं

अगर बचा रहा तो
कृतज्ञतर लौटूँगा

अबकी बार लौटा तो
हताहत नहीं
सबके हिताहित को सोचता
पूर्णतर लौटूँगा

*बृहत्तर=किसी बड़े या विस्तृत की तुलना में और भी बड़ा या विशाल

~ कुँवर नारायण


 Jul 27, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

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