ऐ इश्क़ न छेड़ आ आ के हमें, हम भूले हुओं को याद न कर
पहले ही बहुत नाशाद हैं हम, तू और हमें नाशाद न कर
क़िस्मत का सितम ही कम नहीं कुछ, ये ताज़ा सितम ईजाद न कर
यूँ ज़ुल्म न कर, बे-दाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
*नाशाद=दु:खी; बेदाद=ज़ुल्म
जिस दिन से मिले हैं दोनों का, सब चैन गया आराम गया
चेहरों से बहार-ए-सुब्ह गई, आँखों से फ़रोग़-ए-शाम गया
हाथों से ख़ुशी का जाम छुटा, होंटों से हँसी का नाम गया
ग़मगीं न बना, नाशाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
*फ़रोग़-ए-शाम=शाम की रौनक
हम रातों को उठ कर रोते हैं, रो रो के दुआएँ करते हैं
आँखों में तसव्वुर दिल में ख़लिश, सर धुनते हैं आहें भरते हैं
ऐ इश्क़ ये कैसा रोग लगा, जीते हैं न ज़ालिम मरते हैं
ये ज़ुल्म तू ऐ, जल्लाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
*तसव्वुर=सपने; ख़लिश=फ़िक्र
ये रोग लगा है जब से हमें, रंजीदा हूँ मैं बीमार है वो
हर वक़्त तपिश हर वक़्त ख़लिश, बे-ख़्वाब हूँ मैं बेदार है वो
जीने पे इधर बेज़ार हूँ मैं, मरने पे उधर तयार है वो
और ज़ब्त कहे, फ़रियाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
*रंजीदा=संतप्त; बेज़ार=थके हुए; ज़ब्त=आत्म नियंत्रण
जिस दिन से बँधा है ध्यान तिरा, घबराए हुए से रहते हैं
हर वक़्त तसव्वुर कर कर के, शरमाए हुए से रहते हैं
कुम्हलाए हुए फूलों की तरह, कुम्हलाए हुए से रहते हैं
पामाल न कर, बर्बाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
*पामाल=परों से कुचलना
बेदर्द! ज़रा इंसाफ़ तो कर, इस उम्र में और मग़्मूम है वो
फूलों की तरह नाज़ुक है अभी, तारों की तरह मासूम है वो
ये हुस्न सितम! ये रंज ग़ज़ब! मजबूर हूँ मैं मज़लूम है वो
मज़लूम पे यूँ, बे-दाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
*मग़्मूम=दु:खी; मज़लूम=उत्पीड़ित
ऐ इश्क़ ख़ुदारा देख कहीं, वो शोख़-ए-हज़ीं बद-नाम न हो
वो माह-लक़ा बद-नाम न हो, वो ज़ोहरा-जबीं बद-नाम न हो
नामूस का उस के पास रहे, वो पर्दा-नशीं बद-नाम न हो
उस पर्दा-नशीं, को याद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
*ख़ुदारा=ईश्वर के लिए; शोख़-ए-हज़ीं=हास्यास्पद दुख; माह-लक़ा=चंद्रमुखी; ज़ोहरा-जबीं=वीनस जैसे माथे वाली यानि कि सौंदर्य/प्रेम की देवी
~ अख़्तर शीरानी
पहले ही बहुत नाशाद हैं हम, तू और हमें नाशाद न कर
क़िस्मत का सितम ही कम नहीं कुछ, ये ताज़ा सितम ईजाद न कर
यूँ ज़ुल्म न कर, बे-दाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
*नाशाद=दु:खी; बेदाद=ज़ुल्म
जिस दिन से मिले हैं दोनों का, सब चैन गया आराम गया
चेहरों से बहार-ए-सुब्ह गई, आँखों से फ़रोग़-ए-शाम गया
हाथों से ख़ुशी का जाम छुटा, होंटों से हँसी का नाम गया
ग़मगीं न बना, नाशाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
*फ़रोग़-ए-शाम=शाम की रौनक
हम रातों को उठ कर रोते हैं, रो रो के दुआएँ करते हैं
आँखों में तसव्वुर दिल में ख़लिश, सर धुनते हैं आहें भरते हैं
ऐ इश्क़ ये कैसा रोग लगा, जीते हैं न ज़ालिम मरते हैं
ये ज़ुल्म तू ऐ, जल्लाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
*तसव्वुर=सपने; ख़लिश=फ़िक्र
ये रोग लगा है जब से हमें, रंजीदा हूँ मैं बीमार है वो
हर वक़्त तपिश हर वक़्त ख़लिश, बे-ख़्वाब हूँ मैं बेदार है वो
जीने पे इधर बेज़ार हूँ मैं, मरने पे उधर तयार है वो
और ज़ब्त कहे, फ़रियाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
*रंजीदा=संतप्त; बेज़ार=थके हुए; ज़ब्त=आत्म नियंत्रण
जिस दिन से बँधा है ध्यान तिरा, घबराए हुए से रहते हैं
हर वक़्त तसव्वुर कर कर के, शरमाए हुए से रहते हैं
कुम्हलाए हुए फूलों की तरह, कुम्हलाए हुए से रहते हैं
पामाल न कर, बर्बाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
*पामाल=परों से कुचलना
बेदर्द! ज़रा इंसाफ़ तो कर, इस उम्र में और मग़्मूम है वो
फूलों की तरह नाज़ुक है अभी, तारों की तरह मासूम है वो
ये हुस्न सितम! ये रंज ग़ज़ब! मजबूर हूँ मैं मज़लूम है वो
मज़लूम पे यूँ, बे-दाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
*मग़्मूम=दु:खी; मज़लूम=उत्पीड़ित
ऐ इश्क़ ख़ुदारा देख कहीं, वो शोख़-ए-हज़ीं बद-नाम न हो
वो माह-लक़ा बद-नाम न हो, वो ज़ोहरा-जबीं बद-नाम न हो
नामूस का उस के पास रहे, वो पर्दा-नशीं बद-नाम न हो
उस पर्दा-नशीं, को याद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
*ख़ुदारा=ईश्वर के लिए; शोख़-ए-हज़ीं=हास्यास्पद दुख; माह-लक़ा=चंद्रमुखी; ज़ोहरा-जबीं=वीनस जैसे माथे वाली यानि कि सौंदर्य/प्रेम की देवी
~ अख़्तर शीरानी
Jul 14, 2019 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment