तिरछी निगाहें तंग क़बाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
*क़बाएँ=कपड़े
हिज्र में अपना और है आलम अब्र-ए-बहाराँ दीदा-ए-पुर-नम
ज़िद कि हमें वो आप बुलाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
*हिज्र=विछोह; आलम=हाल; अब्र-ए-बहाराँ=बरसात के बादल; दीदा-ए-पुर-नम=भीगी आँखें
अपनी अदा से आप झिजकना अपनी हवा से आप खटकना
चाल में लग़्ज़िश मुँह पे हयाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
*लग़्ज़िश=अपराध
हाथ में आड़ी तेग़ पकड़ना ताकि लगे भी ज़ख़्म तो ओछा
क़स्द कि फिर जी भर के सताएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
तेग़=तलवार; क़स्द=इरादा
काली घटाएँ बाग़ में झूले धानी दुपट्टे लट झटकाए
मुझ पे ये क़दग़न आप न आएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
क़दग़न=रोक, प्रतिबंध
पिछले पहर उठ उठ के नमाज़ें नाक रगड़नी सज्दों पे सज्दे
जो नहीं जाएज़ उस की दुआएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
'शाद' न वो दीदार-परस्ती और न वो बे-नश्शा की मस्ती
तुझ को कहाँ से ढूँढ के लाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
*दीदार-परस्ती=दर्शनाभिलाषी; बे-नश्शा=बिना नशा किये
~ शाद अज़ीमाबादी
Nov 20, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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