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Sunday, November 8, 2020

अपनी फ़ितरत की बुलंदी पे मुझे नाज़ है कब

 


अपनी फ़ितरत की बुलंदी पे मुझे नाज़ है कब

हाँ तिरी पस्त निगाही से गिला है मुझ को
तू गिरा देगी मुझे अपनी नज़र से वर्ना
तेरे क़दमों पे तो सज्दा भी रवा है मुझ को
*सज़्दा=सर झुकाना; रवा=मंज़ूर
 
तू ने हर आन बदलती हुई इस दुनिया में
मेरी पाइंदगी ए ग़म को तो देखा होता
कलियाँ बे ज़ार हैं शबनम के तलव्वुन से मगर
तू ने इस दीदा ए पुर नम को तो देखा होता
*पाइंदगी ए ग़म=हमेशा रहने वाला दुख; बेज़ार=उकताया; तलव्वुन=रंग बदलना; दीदा ए पुर नम=नम आँखें
 
हाए जलती हुई हसरत ये तिरी आँखों में
कहीं मिल जाए मोहब्बत का सहारा तुझ को
अपनी पस्ती का भी एहसास फिर इतना एहसास
कि नहीं मेरी मोहब्बत भी गवारा तुझ को

और ये ज़र्द से रुख़्सार ये अश्कों की क़तार
मुझ से बे ज़ार मिरी अर्ज़ ए वफ़ा से बे ज़ार
*ज़र्द=पीले; अर्ज़ ए वफ़ा =

~ मुईन अहसन जज़्बी

Nov 08, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

 

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