सो रहा था तो शोर बरपा था
उठ के देखा तो मैं अकेला था
ख़ाक पर मेरे ख़्वाब बिखरे थे
और मैं रेज़ा रेज़ा चुनता था
चार जानिब वजूद की दीवार
अपनी आवाज़ मैं ही सुनता था
उम्र भर बूँद बूँद को तरसे
सामने घर के एक दरिया था
लब-ए-दरिया खड़े रहे दोनों
वो भी प्यासा था मैं भी प्यासा था
~ रज़ी तिर्मिज़ी
Nov 09, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment