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Sunday, November 8, 2020

सो रहा था तो शोर बरपा था

 

सो रहा था तो शोर बरपा था
उठ के देखा तो मैं अकेला था

ख़ाक पर मेरे ख़्वाब बिखरे थे
और मैं रेज़ा रेज़ा चुनता था

चार जानिब वजूद की दीवार
अपनी आवाज़ मैं ही सुनता था

उम्र भर बूँद बूँद को तरसे
सामने घर के एक दरिया था

लब-ए-दरिया खड़े रहे दोनों
वो भी प्यासा था मैं भी प्यासा था

~ रज़ी तिर्मिज़ी

Nov 09, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

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