हमारे ख़्वाब सब ताबीर से बाहर निकल आए
वो अपने-आप कल तस्वीर से बाहर निकल आए
ये अहल-ए-होश तो घर से कभी बाहर नहीं निकले
मगर दीवाने हर ज़ंजीर से बाहर निकल आए
*अहल-ए-होश=होश में रहने वाले
कोई आवाज़ दे कर देख ले मुड़ कर न देखेंगे
मोहब्बत तेरे इक इक तीर से बाहर निकल आए
दर-ओ-दीवार भी घर के बहुत मायूस थे हम से
सो हम भी रात इस जागीर से बाहर निकल आए
बड़ी मुश्किल ज़मीनों में गुलाबी रंग भरना था
बहुत जल्दी बयाज़-ए-मीर से बाहर निकल आए
*बयाज़-ए-मीर=मीर की (हस्त लिखित) पुस्तक
~ हसीब सोज़
Nov 27, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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