बे-ख़बर होते होए भी बा-ख़बर लगते हो तुम
दूर रह कर भी मुझे नज़दीक-तर लगते हो तुम
*बा-ख़बर=सचेत
क्यूँ न आऊँ सज सँवर कर मैं तुम्हारे सामने
ख़ुश-अदा लगते हो मुझ को ख़ुश-नज़र लगते हो तुम
तुम ने लम्स-ए-मो'तबर से बख़्श दी वो रौशनी
मुझ को मेरी आरज़ूओं की सहर लगते हो तुम
*लम्स-ए-मो'तर=भरोसेमंद स्पर्श
जिस के साए में अमाँ मिलती है मेरी ज़ीस्त को
मुझ को जलती धूप में ऐसा शजर लगते हो तुम
*अमाँ=सुरक्षा; ज़ीस्त=जीवन; शजर=पेड़
क्यूँ तुम्हारे साथ चलने पर न आमादा हो दिल
ख़ुश्बू-ए-एहसास मेरे हम-सफ़र लगते हो तुम
'नाज़' तुम पर नाज़ करती है मोहब्बत की क़सम
ज़िंदगी भर की दुआओं का असर लगते हो तुम
~ नाज़ बट
Nov 30, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment