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Saturday, January 24, 2015

कितना कोमल, कितना वत्सल

कितना कोमल, कितना वत्सल,
रे! जननी का वह अंतस्तल,
जिसका यह शीतल करुणा जल,
बहता रहता युग-युग अविरल

~ गोपाल सिंह नेपाली


   Jan 17, 2015 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

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