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Saturday, January 24, 2015

हम पर तुम्हारी चाह का

हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है
दुशनाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है
दिल नाउम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है

*दुशनाम=दुर्वचन; इकराम=इज्जत;

~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़


   Jan 23, 2015 | e-kavya.blogspot.com
   Ashok Singh

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