हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है
दुशनाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है
दिल नाउम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
*दुशनाम=दुर्वचन; इकराम=इज्जत;
~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Jan 23, 2015 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
दुशनाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है
दिल नाउम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
*दुशनाम=दुर्वचन; इकराम=इज्जत;
~ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Jan 23, 2015 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
No comments:
Post a Comment