प्रकृति नहीं डरकर झुकती है
कभी भाग्य के बल से,
सदा हारती वह मनुष्य के
उद्यम से, श्रमजल से ।
~ रामधारी सिंह दिनकर
Jan 30, 2015 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
कभी भाग्य के बल से,
सदा हारती वह मनुष्य के
उद्यम से, श्रमजल से ।
~ रामधारी सिंह दिनकर
Jan 30, 2015 | e-kavya.blogspot.com
Ashok Singh
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