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Saturday, October 14, 2017

कैसी है पहचान तुम्हारी

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कैसी है पहचान तुम्हारी
राह भूलने पर मिलते हो!!

पथरा चलीं पुतलियाँ मैंने विविध धुनों में कितना गाया
दायें बायें ऊपर नीचे दूर पास तुमको कब पाया
धन्य कुसुम, पाषाणों पर ही तुम खिलते हो तो खिलते हो
कैसी है पहचान तुम्हारी
राह भूलने पर मिलते हो!!

किरणों से प्रगट हुए सूरज के सौ रहस्य तुम खोल उठे से
किन्तु अतड़ियों में गरीब की कुम्हलाए स्वर बोल उठे से
काँच कलेजे में भी करूणा के डोरे से ही खिलते हो
कैसी है पहचान तुम्हारी
राह भूलने पर मिलते हो!!

प्रणय और पुरुषार्थ तुम्हारा मनमोहिनी धरा के बल है
दिवस रात्रि बीहड़ बस्ती सब तेरी ही छाया के छल हैं
प्राण कौन से स्वप्न दिख गए जो बलि के फूलों खिलते हो
कैसी है पहचान तुम्हारी
राह भूलने पर मिलते हो!!

~ माखनलाल चतुर्वेदी


  Oct 14, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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