रस्ते की कड़ी धूप को इम्कान में रखिये
छालों को सफ़र के सर-ओ-सामान में रखिये
*इम्कान=संभावना; सर-ओ-सामान=ज़रूरी चीज़ें
वो दिन गए जब फिरते थे हाथों में लिये हाथ
अब उनकी निगाहों को भी एहसान में रखिये
ये जो है ज़मीर आपका, जंज़ीर न बन जाए
ख़ुद्दारी को छूटे हुए सामान में रखिये
जैसे नज़र आते हैं कभी वैसे बनें भी
अपने को कभी अपनी ही पहचान में रखिये
चेहरा जो कभी दोस्ती का देखना चाहें
काँटों को सजा कर किसी गुलदान में रखिये
लेना है अगर लुत्फ़ समंदर के सफ़र का
कश्ती को मुसलसल किसी तूफ़ान में रखिये
*मुसलसल=लगातार
ये वक़्त है रहता नहीं इक जैसा हमेशा
ये बात हमेशा के लिए ध्यान में रखिये
जब छोड़ के जाएँगे इसे ये न छुटेगी
दुनिया को न भूले से भी अरमान में रखिये
~ राजेश रेड्डी
Oct 22, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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