तोड़कर चट्टान फूटे सैकड़ों झरने
टेसुओं में खिल गये दहके हुए अंगार
फिर उठे सोए समन्दर में महकती
खुशबुओं के ज्वार
रंग उभरा कल्पनाओं में
घुल गया चन्दन हवाओं में
मिल गयीं बेहोशियाँ आकर
होश की सारी दवाओं में
भावनाओं की उठी जयमाल के आगे
आज संयम सिर झुकाने
को हुआ लाचार
छू लिया जो रेशमी पल ने
बिजलियाँ जल में लगीं जलने
प्रश्न सारे कर दिए झूठे
दो गुलाबों के लिखे हल ने
तितलियों ने आज मौसम के इशारे पर
फूल की हर पंखुड़ी का
कर दिया शृंगार
लड़खड़ाई साँस की सरगम
गुनगुना कर गीत गोविन्दम्
झिलमिलाकर झील के जल में
और उजली हो गई पूनम
रंग डाला फिर हठीले श्याम ने आकर
राधिका का हर बहाना
हो गया बेकार
~ कीर्ति काले
Oct 7, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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