जैसे सौदाई को बेवजह सुकूँ मिलता है
मैं भटकता था बियाबान में साये की तरह
अपनी नाकामी-ए-ख़्वाहिश पे पशेमाँ होकर
फ़र्ज़ के गाँव में जज़्बात का मकाँ होकर
पर अचानक मुझे तुमने जो पुकारा तो लगा
कौन ईसा है जिसे मेरी दवा याद रही।
*सौदाई=पागल, सनकी
वो मुझे छू ले, समझ ले वो मेरे पास आए
काँपते होंठों पे बस एक ही फरियाद रही
दिल की उधड़ी हुई सीवन को छूआ यूँ तुमने
कुछ भी ताज़ा न था पर फिर भी कहा यूं तुमने
रूह की आँख ने कई लम्हात ख़ुशी रोई है
तुमने अपनाई से छूकर जो टटोला है मुझे
बर्फ़ के शहर में कुछ आस के सूरज की तरह
बरस रहा हूँ मुसलसल मैं ख़ुद पे बादल सा
दिख रहा है तू फरिश्ता- सा एक हँसता हुआ।
मैंने आँखों में तेरी होने का सामाँ देखा
और चेहरे से तेरे होने की ख़ुशबू पाई
मैंने जज़्बात में देखी है तेरी लौ जिसमें
मुझ-सी वीराँ कोई वादी भी जगमगाई है
और मैं ज़ेह्न की तारीकियों को यूँ डपटूँ।
काहिली दूर हो अब मैं भी ज़रा-सा हँस लूँ
हटो उदासियों आँगन में बहार आई है
आज जज़्बात पे हावी है ये लम्हात का दर्द
ग़म के संदेशों का दुख, दिल के हालात का दर्द
अब तेरी याद भी आती है तो याद आने पे
दिल भड़क जाता है कुछ और भी समझाने पे
अब तेरी राह से रिश्ता नहीं कोई बाकी
नमी न कोई इसे कर सके कभी ठंडा
अब तेरी याद को आँखो में छुपा रखा है
हम नहीं ज़ख्म जो हर रोज दर्द सह जाएँ।
सोचता मैं भी हूँ दफना दूँ ये बोझल चेहरा
सिर उठाँ जो कि सजदे में झुका रहता है
लड़ें, लड़ें तो लड़ें पर ये ख़्याल आता है
तू है ख़ुद अपने मुकाबिल लड़ें तो किससे लड़ें
मेरे निशाने पे मैं हूँ भिड़ूँ तो किससे भिड़ूँ
हर तरफ तू है मैं बचता भी हूँ तो किससे बचूँ।
बुझा-बुझा सा ये दिल सुबह शाम करता है
सुस्त क़दमों से कोई सूरज को दफ़्न करता है
कोई हवा जो बहुत रहमदिल हो ये सुन ले
पहाड़ अब भी समंदर को याद करता है
इस जनम में तो है रिश्ता यही तेरा मेरा।
इंतजार और करें अगले जनम तक आओ।
~ नवनीत शर्मा
Feb 2, 2018 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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