अश्रु से मेरी नहीं पहचान थी कुछ
दर्द से परिचय तुम्हीं ने तो कराया,
छू दिया तुमने हृदय की धड़कनों को
गीत का अंकुर तुम्हीं ने तो उगाया,
मूक मन को स्वर दिये हैं बस तुम्हीं ने
उम्र भर एहसान भूलूंगा नहीं मैं।
मैं न पाता सीख यह भाषा नयन की
तुम न मिलते उम्र मेरी व्यर्थ होती,
सांस ढोती शव विवश अपना स्वयं ही
और मेरी जिंदगी किस अर्थ होती,
प्राण को विश्वास सौंपा बस तुम्हीं ने
उम्र भर एहसान भूलूंगा नहीं मैं।
तुम मिले हो क्या मुझे साथी सफर में
राह से कुछ मोह जैसा हो गया है,
एक सूनापन कि जो मन को डसे था
राह में गिरकर कहीं वह खो गया है,
शोक को उत्सव किया है बस तुम्हीं ने
उम्र भर एहसान भूलूंगा नहीं मैं।
यह हृदय पाहन बना रहता सदा ही
सच कहूँ यदि जिंदगी में तुम न मिलते,
यूं न फिर मधुमास मेरा मित्र होता
और अधरों पर न यह फिर फूल खिलते,
भग्न मंदिर फिर बनाया बस तुम्हीं ने
उम्र भर एहसान भूलूंगा नहीं मैं।
तीर्थ सा मन कर दिया है बस तुम्हीं ने,
उम्र भर एहसान भूलूंगा नहीं मैं।
~ गोरख नाथ
Feb 11, 2018 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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