दिन टेसू के फूलों वाले
कब आएँगे पता नहीं
दरस-परस की नहीं रही
अब अपने बस की
इच्छाएँ भी हुईं अपाहिज
आम-गुलमोहर चैती-आल्हा
कब गाएँगे पता नहीं
आबो हवा धरा की बदली
बेमौसम होते हैं पतझर
जो पलाश-वन में रहते थे
महानगर में हैं वे बेघर
महा-हाट से सपने साहू
कब लाएँगे पता नहीं
वृन्दावनवासी देवा भी
बैठे भौंचक सिंधु-किनारे
आने वाले पोत वहीं हैं
जिनसे बरसेंगे अंगारे
बरखा के शीतल-जल मेघा
कब छाएँगे पता नहीं
~ कुमार रवींद्र
कब आएँगे पता नहीं
दरस-परस की नहीं रही
अब अपने बस की
इच्छाएँ भी हुईं अपाहिज
आम-गुलमोहर चैती-आल्हा
कब गाएँगे पता नहीं
आबो हवा धरा की बदली
बेमौसम होते हैं पतझर
जो पलाश-वन में रहते थे
महानगर में हैं वे बेघर
महा-हाट से सपने साहू
कब लाएँगे पता नहीं
वृन्दावनवासी देवा भी
बैठे भौंचक सिंधु-किनारे
आने वाले पोत वहीं हैं
जिनसे बरसेंगे अंगारे
बरखा के शीतल-जल मेघा
कब छाएँगे पता नहीं
~ कुमार रवींद्र
Submitted by: Ashok Singh
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