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Sunday, February 4, 2018

क्या वह भी प्रिय गान तुम्हारा

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क्या वह भी अरमान तुम्हारा?

जो मेरे नयनों के सपने,
जो मेरे प्राणों के अपने ,
दे-दे कर अभिशाप चले सब,
क्या यह भी वरदान तुम्हारा?



खुली हवा में पर फैलाता,
मुक्त विहग नभ चढ़ कर गाता
पर जो जकड़ा द्वंद्व-बन्ध में,
क्या वह भी निर्माण तुम्हारा?

बादल देख हृदय भर आया
'दो दो-बूँद' कहा, दुलराया ;
पर पपीहरे ने जो पाया,
क्या वह भी पाषाण तुम्हारा?

नीरव तम, निशीथ की बेला,
मरु पथ पर मैं खड़ा अकेला
सिसक-सिसक कर रोता है जो,
क्या वह भी प्रिय गान तुम्हारा?

~ जानकीवल्लभ शास्त्री

  Feb 3, 2018 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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