ऐ सनम जिस ने तुझे चाँद सी सूरत दी है
उसी अल्लाह ने मुझ को भी मोहब्बत दी है
तेग़ बे-आब है ने बाज़ु-ए-क़ातिल कमज़ोर
कुछ गिराँ-जानी है कुछ मौत ने फ़ुर्सत दी है
*तेग़=तलवार; गिराँ-जानी=कठोर
इस क़दर किस के लिए ये जंग-ओ-जदल ऐ गर्दूं
न निशाँ मुझ को दिया है न तू नौबत दी है
*जंग-ओ-जदल=लड़ाइ; गर्दूं=स्वर्ग
साँप के काटे की लहरें हैं शब-ओ-रोज़ आतीं
काकुल-ए-यार के सौदे ने अज़िय्यत दी है
*काकुल-ए-यार=प्रेमिका की लटें; अज़िय्यत=तक्लीफ़
आई इक्सीर ग़नी दिल नहीं रखती ऐसा
ख़ाकसारी नहीं दी है मुझे दौलत दी है
*इक्सीर=असरकारी दवा; ग़नी=धनवान
शम्अ का अपने फ़तीला नहीं किस रात जला
अमल-ए-हुब की बहुत हम ने भी दावत दी है
*फ़तीला=बाती; अमल-ए-हुब=प्यार करना
जिस्म को ज़ेर ज़मीं भी वही पहुँचा देगा
रूह को जिस ने फ़लक सैर की ताक़त दी है
*ज़ेर=नीचे
फ़ुर्क़त-ए-यार में रो रो के बसर करता हूँ
ज़िंदगानी मुझे क्या दी है मुसीबत दी है
*फ़ुर्क़त=जुदाई
यादशब-ए-महबूब फ़रामोश न होवे ऐ दिल
हुस्न-ए-निय्यत ने मुझे इश्क़ से नेमत दी है
*यादशब=याद करना; फ़रमोश=भूल जाना
गोश पैदा किए सुनने को तिरा ज़िक्र-ए-जमाल
देखने को तिरे, आँखों में बसारत दी है
*गोश=कान
लुत्फ़-ए-दिल-बस्तगी-ए-आशिक ़-ए-शैदा को न पूछ
दो जहाँ से इस असीरी ने फ़राग़त दी है
*बस्तगी=बंधन; शैदा=किसी के प्रेम में मुग्ध ; असीरी=क़ैद; फ़राग़त=आराम
कमर-ए-यार के मज़मून को बाँधो 'आतिश'
ज़ुल्फ़-ए-ख़ूबाँ सी रसा तुम को तबीअत दी है
*ख़ूबाँ=खूबसूरत लड़की; रसा=पहुँच
~ हैदर अली आतिश
उसी अल्लाह ने मुझ को भी मोहब्बत दी है
तेग़ बे-आब है ने बाज़ु-ए-क़ातिल कमज़ोर
कुछ गिराँ-जानी है कुछ मौत ने फ़ुर्सत दी है
*तेग़=तलवार; गिराँ-जानी=कठोर
इस क़दर किस के लिए ये जंग-ओ-जदल ऐ गर्दूं
न निशाँ मुझ को दिया है न तू नौबत दी है
*जंग-ओ-जदल=लड़ाइ; गर्दूं=स्वर्ग
साँप के काटे की लहरें हैं शब-ओ-रोज़ आतीं
काकुल-ए-यार के सौदे ने अज़िय्यत दी है
*काकुल-ए-यार=प्रेमिका की लटें; अज़िय्यत=तक्लीफ़
आई इक्सीर ग़नी दिल नहीं रखती ऐसा
ख़ाकसारी नहीं दी है मुझे दौलत दी है
*इक्सीर=असरकारी दवा; ग़नी=धनवान
शम्अ का अपने फ़तीला नहीं किस रात जला
अमल-ए-हुब की बहुत हम ने भी दावत दी है
*फ़तीला=बाती; अमल-ए-हुब=प्यार करना
जिस्म को ज़ेर ज़मीं भी वही पहुँचा देगा
रूह को जिस ने फ़लक सैर की ताक़त दी है
*ज़ेर=नीचे
फ़ुर्क़त-ए-यार में रो रो के बसर करता हूँ
ज़िंदगानी मुझे क्या दी है मुसीबत दी है
*फ़ुर्क़त=जुदाई
यादशब-ए-महबूब फ़रामोश न होवे ऐ दिल
हुस्न-ए-निय्यत ने मुझे इश्क़ से नेमत दी है
*यादशब=याद करना; फ़रमोश=भूल जाना
गोश पैदा किए सुनने को तिरा ज़िक्र-ए-जमाल
देखने को तिरे, आँखों में बसारत दी है
*गोश=कान
लुत्फ़-ए-दिल-बस्तगी-ए-आशिक
दो जहाँ से इस असीरी ने फ़राग़त दी है
*बस्तगी=बंधन; शैदा=किसी के प्रेम में मुग्ध ; असीरी=क़ैद; फ़राग़त=आराम
कमर-ए-यार के मज़मून को बाँधो 'आतिश'
ज़ुल्फ़-ए-ख़ूबाँ सी रसा तुम को तबीअत दी है
*ख़ूबाँ=खूबसूरत लड़की; रसा=पहुँच
~ हैदर अली आतिश
Feb 9, 2018 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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