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Sunday, February 18, 2018

ज़िंदगी मोतियों की ढलकती लड़ी

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ज़िंदगी मोतियों की ढलकती लड़ी
ज़िंदगी रंग-ए-गुल का बयाँ दोस्तो
गाह रोती हुई गाह हँसती हुई
मेरी आँखें हैं अफ़्साना-ख़्वाँ दोस्तो
*गाह=कभी; अफ़्साना-ख़्वाँ=कहानी कहने वाला

है उसी के जमाल-ए-नज़र का असर
ज़िंदगी ज़िंदगी है सफ़र है सफ़र
साया-ए-शाख़-ए-गुल शाख़-ए-गुल बन गया
बन गया अब्र अब्र-ए-रवाँ दोस्तो
*जमाल=सुंदर; अब्र-ए-रवाँ=चलता हुआ बादल

इक महकती बहकती हुई रात है
लड़खड़ाती निगाहों की सौग़ात है
पंखुड़ी की ज़बाँ फूल की दास्ताँ
उस के होंटों की परछाइयाँ दोस्तो

कैसे तय होगी ये मंज़िल-ए-शाम-ए-ग़म
किस तरह से हो दिल की कहानी रक़म
इक हथेली में दिल इक हथेली में जाँ
अब कहाँ का ये सूद-ओ-ज़ियाँ दोस्तो
*सूद-ओ-ज़ियाँ=लाभ या हानि

दोस्तो एक दो जाम की बात है
दोस्तो एक दो गाम की बात है
हाँ उसी के दर-ओ-बाम की बात है
बढ़ न जाएँ कहीं दूरियाँ दोस्तो

सुन रहा हूँ हवादिस की आवाज़ को
पा रहा हूँ ज़माने के हर राज़ को
दोस्तो उठ रहा है दिलों से धुआँ
आँख लेने लगी हिचकियाँ दोस्तो
*हवादिस=दुर्घटना

~ मख़्दूम मोहिउद्दीन


  Feb 17, 2018 | e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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