ज्ञान घटे ठग चोर की सँगति, मान घटे पर गेह के जाये,
पाप घटे कछु पुन्य किये, अरु रोग घटे कछु औषध खाये।
प्रीति घटे कछु माँगन तें, अरु नीर घटे रितु ग्रीषम आये,
नारि प्रसंग ते जोर घटे, जम त्रास घटे हरि के गुन गाये।।
~ अज्ञात
भावार्थ:
पाप घटे कछु पुन्य किये, अरु रोग घटे कछु औषध खाये।
प्रीति घटे कछु माँगन तें, अरु नीर घटे रितु ग्रीषम आये,
नारि प्रसंग ते जोर घटे, जम त्रास घटे हरि के गुन गाये।।
~ अज्ञात
भावार्थ:
धूर्त र्और धोखेबाज़ लोगों के साथ रहने से ज्ञान कम होता है, और दूसरे के घर बार बार जाने से सम्मान। परंतु इस दुनिया में पुण्य के काम करने से पाप कम होते हैं, और औषधि यानि कि दवा खाने से रोग नियंत्रण में होता है। कुछ माँगने से प्रेम में कमी आती है, जैसे कि गर्मी की ऋतु आने पर ताल तलैयों में पानी की कमी हो जाती है। इसी तरह सदा स्त्रियों के बारे में सोचने और चर्चा करते रहने से शरीर में दुर्बलता और मन के नियंत्रण में कमज़ोरी आती है लेकिन हरि के गुण गाने से डर, भय और तकलीफ़ में जम कर कमी आती है।
Aug 2, 2019 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
No comments:
Post a Comment