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Friday, January 10, 2020

हिंदी के चेहरे पर चाँदी की चमक है

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कहने को जनता की कितनी मुँहबोली है
सुख-दुख में शामिल है सबकी हमजोली है
कामकाज में लेकिन रत्‍ती-भर धमक है
हिंदी के चेहरे पर चाँदी की चमक है.

ऊँचे आदर्शों के सपनों में खोई है
किये रतजगे कितनी रात नहीं सोई है
आजादी की खातिर बलिदानी वीरों की
यादों में यह कितनी घुट-घुट कर रोई है.
यों तो यह भोली है, युग की रणभेरी है
लेकिन अंग्रेजी की, भृत्या है, चेरी है
हाथों में संविधान फिर भी है तुच्‍छ मान
आंखों में लेकिन पटरानी-सी ललक है
हिंदी के चेहरे पर चाँदी की चमक है.

कितने ईनाम और कितने प्रोत्‍साहन हैं
फिर भी मुखमंडल पर कोरे आश्‍वासन हैं.
जेबों में सोने के सिक्‍कों की आमद है
फाइल पर हिंदी की सिर्फ हिनहिनाहट है.
बैठक में चर्चा है दो जो भी देना है.
महामहिम के हाथो पुरस्‍कार लेना है.
कितना कुछ निष्‍प्रभ है, समारोह लकदक है
शील्‍ड लिये हाथों में क्‍या शाही लचक है!
हिंदी के चेहरे पर चांदी की चमक है.

इत्रों के फाहे हैं, टाई की चकमक है
हिंदी की देहरी पर हिंग्‍लिश की दस्‍तक है.
ऊँची दूकानों के फीके पकवान हैं
बॉस मगर हिंदी के परम ज्ञानवान हैं.
शाल औ दुशाला है पान औ मसाला है.
उबा रहे भाषण हैं यही कार्यशाला है.
हिंदी की बिंदी की होती चिंदी-चिंदी
गायब होता इसके चेहरे का नमक है.
हिंदी के चेहरे पर चॉंदी की चमक है.

हिंदी के तकनीकी शब्‍द बहुत भारी हैं
शब्‍दकोश भी जैसे बिल्‍कुल सरकारी हैं.
भाषा यह रंजन की और मनोरंजन की
इस भाषा में दिखते कितने व्‍यापारी हैं.
बेशक इस भाषा का ऑंचल मटमैला है
राष्‍ट्रप्रेम का केवल शुद्ध झाग फैला है.
दाग़ धुलें कैसे इस दाग़दार चेहरे के
नकली मुस्कानें हैं, बेमानी ठसक है.
हिंदी के चेहरे पर चांदी की चमक है.

हिंदी की सेवा है, हिंदी अधिकारी हैं
खाते सब मेवा हैं, गाते दरबारी हैं
एक दिवस हिंदी का, एक शाम हिंदी की
बाकी दिन कुर्सी पर अंग्रेजी प्‍यारी है.
कैसा यह स्‍वाभिमान अपना भारत महान !
हिंदी अपने ही घर दीन-हीन,मलिन-म्‍लान

पांवों के नीचे है इसके दलदल ज़मीन
नित प्रति बुझती जाती सत्‍ता की हनक है.
हिंदी के चेहरे पर चॉंदी की चमक है.

~ ओम निश्‍चल

 Jan 10, 2020 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

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