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Friday, January 17, 2020

हम उन को छीन कर लाए हैं

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हम उन को छीन कर लाए हैं कितने दावेदारों से
शफ़क़ से चाँदनी-रातों से फूलों से सितारों से
शफ़क़= सवेरे या शाम की लालिमा

हमारे ज़ख़्म-ए-दिल दाग़-ए-जिगर कुछ मिलते-जुलते हैं
गुलों से गुल-रुख़ों से महवशों से माह-पारों से
*गुल-रुख़ों=बहुत सुंदर; महवशों=चंद्रमुखी; माह-पारों=चाँद सी सूरत

ज़माने में कभी भी क़िस्मतें बदला नहीं करतीं
उमीदों से भरोसों से दिलासों से सहारों से

सुने कोई तो अब भी रौशनी आवाज़ देती है
गुफाओं से पहाड़ों से बयाबानों से ग़ारों से
*ग़ारों=गुफ़ाओं

बराबर एक प्यासी रूह की आवाज़ आती है
कुओं से पन-घटों से नद्दियों से आबशारों से
*आबशारों=झरनों

कभी पत्थर के दिल ऐ 'कैफ़' पिघले हैं न पिघलेंगे
मुनाजातों से फ़रियादों से चीख़ों से पुकारों से
*मुनाजातों=प्रार्थना

~ कैफ़ भोपाली

 Jan 17, 2020 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

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