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Sunday, January 12, 2020

एक रक़्क़ासा थी



एक रक़्क़ासा थी किस किस से इशारे करती
आँखें पथराई अदाओं में तवाज़ुन न रहा
डगमगाई तो सब अतराफ़ से आवाज़ आई
फ़न के इस औज पे इक तेरे सिवा कौन गया

*रक़्क़ासा=नर्तकी; तवाजुन=संतुलन; फ़न=कला; औज=ऊँचाई

फ़र्श-ए-मरमर पे गिरी गिर के उठी उठ के झुकी
ख़ुश्क होंटों पे ज़बाँ फेर के पानी माँगा
ओक उठाई तो तमाशाई सँभल कर बोले
रक़्स का ये भी इक अंदाज़ है अल्लाह अल्लाह

*ओक=अंजुरी; रक़्स=नृत्य

हाथ फैले ही रहे सिल गई होंटों से ज़बाँ
एक रक़्क़ास किसी सम्त से नागाह बढ़ा!
पर्दा सरका तो मअन फ़न के पुजारी गरजे
रक़्स क्यूँ ख़त्म हुआ? वक़्त अभी बाक़ी था

*रक़्क़ास=नर्तकी; नागाह=अचानक; मअन=बहुत तेज़ी से

~ अहमद नदीम क़ासमी


 Jan 12, 2020 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

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