2020 - नये साल की मुबारक बाद - नूतन वर्षाभिनंदन
दुआएँ और दुआओं से भरी
बे-अंत तहरीरें*
मुझे हर साल के इन आख़िरी
लम्हों में मिलती हैं
मेरे अहबाब* के नामों में
अक्सर दर्ज होता है
ख़ुदा महफ़ूज़* रक्खे
साल भर मुझ को बलाओं से
मुझे अब ज़हर में लिपटी हवाएँ
छू के न गुज़रें
मुझे मौजूद और आने वाले
साल के लम्हे
मुबारक दर मुबारक हों
यही तहरीर मैं अहबाब को
वापस लुटाता हूँ
यही जज़्बात मेरे दोस्तों
के नाम होते हैं
मगर फिर वक़्त के हाथों
न जाने क्या गुज़रती है
कि जो भी तीर आता है
उसी जानिब से आता है
जहाँ से इत्र में डूबा हुआ
पैग़ाम आया था
जहाँ से साल भर
महफ़ूज़ रहने का
हसीं मलफ़ूफ़
मेरे नाम आया था
*तहरीर=लिखावटें; अहबाब=मित्र-गण; महफ़ूज़=सुरक्षित; मलफ़ूफ़=लिफ़ाफ़े में बंद खत
~ इक़बाल नाज़िर
Jan 01, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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