लाल लाल टेसू फूलि रहे हैं बिलास संग,
स्याम रंग मयी मानो मसि में मिलाए हैं।
तहाँ मधु-काज आइ बैठे मधुकर पुंज,
मलय पवन उपवन - बन धाए हैं।
‘सेनापति’ माधव महीना में पलाश तरु,
देखि देखि भाव कविता के मन आये हैं।
आधे अंग सुलगि सुलगि रहे, आधे मानो
विरही धन काम क्वैला परचाये हैं।
--
धरयौ है रसाल मोर सरस सिरच रुचि,
उँचे सब कुल मिले गलत न अंत है।
सुचि है अवनि बारि भयौ लाज होम तहाँ,
भौंरे देखि होत अलि आनंद अनंत है।
नीकी अगवानी होत सुख जन वासों सब,
सजी तेल ताई चैंन मैंन भयंत है।
सेनापति धुनि द्विज साखा उच्चतर देखौ,
बनौ दुलहिन बनी दुलह बसंत है।
~ सेनापति
तहाँ मधु-काज आइ बैठे मधुकर पुंज,
मलय पवन उपवन - बन धाए हैं।
‘सेनापति’ माधव महीना में पलाश तरु,
देखि देखि भाव कविता के मन आये हैं।
आधे अंग सुलगि सुलगि रहे, आधे मानो
विरही धन काम क्वैला परचाये हैं।
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धरयौ है रसाल मोर सरस सिरच रुचि,
उँचे सब कुल मिले गलत न अंत है।
सुचि है अवनि बारि भयौ लाज होम तहाँ,
भौंरे देखि होत अलि आनंद अनंत है।
नीकी अगवानी होत सुख जन वासों सब,
सजी तेल ताई चैंन मैंन भयंत है।
सेनापति धुनि द्विज साखा उच्चतर देखौ,
बनौ दुलहिन बनी दुलह बसंत है।
~ सेनापति
Submitted by: Ashok Singh
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