बड़ी लम्बी कहानी है सुनोगे?
सहर की आँख खुलने भी न पाई थी
मिरे तरकश ने लाखों तीर बरसाए शुआओं के
किसी ने आफ़्ताबाना हर इक ज़र्रे को चमकाया
किसी ने माहताबी चादरें हर सम्त फैलाईं
कोई जुगनू की सूरत झिलमिलाया
इन्हीं बिखरे हुए तीरों के ज़ेर-ए-साया
मैं चलता रहा
हर मोड़ पे कोई न कोई वाक़िआ
कोई न कोई हादसा
*शुआओं=किरणों; ज़ेर-ए-साया=साये के नीचे; वाक़िआ=घटना
मेरे उजाले को लिपट कर चाट कर
दीमक-ज़दा करता रहा लेकिन
सफ़र की धुन सलामत
जुम्बिश-ए-पा आगे बढ़ती ही रही
कोह-ए-गिराँ पिसते रहे
सागर की लहरें दम-ब-ख़ुद होती रहीं
मैं बढ़ते बढ़ते सरहद-ए-इमरोज़ तक आ पहुँचा
*जुम्बिश-ए-पा=पैरों की हरकत; कोह-ए-गिराँ=बड़े पर्वत; सरहद-ए-इमरोज़=आज की हद
ये माना दूर है मंज़िल
ये माना आबला-पा हूँ
ग़ुबार-ए-गर्दिश-ए-अय्याम में लिपटा हुआ
लेकिन अभी फैला हुआ है सिलसिला मेरे उजालों का
अभी तरकश में लाखों तीर बाक़ी हैं
अभी मेरी कहानी ख़त्म को पहुँची नहीं है
ये बड़ी लम्बी कहानी है
*आबला-पा=पाँव में छाले; दिन=बहुत दिन
~ अज़ीज़ तमन्नाई
Jan 24, 2020 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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