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Friday, December 4, 2020

अजब समाँ है


अजब समाँ है
मैं बंद आँखों से तक रही हूँ
ख़ुमार-ए-शब में गुलाब-रुत की रफ़ाक़तों से महक रही हूँ
वो नर्म ख़ुशबू की तरह दिल में उतर रहा है
में क़ुर्ब-ए-जाँ की लताफ़तों से बहक रही हूँ
ये चाहतों की हसीन बारिश का मो'जिज़ा है
कि मेरी पोरें सुलग रही हैं
मैं क़तरा क़तरा पिघल रही हूँ
मैं रंग-ओ-ख़ुशबू का लम्स पा कर
वफ़ा के पैकर में ढल रही हूँ

न मैं ज़मीं पर
न आसमाँ में
वो ऐसा जादू जगा रहा है
गुलाबी बारिश सुनहरे सपनों के सारे मतलब वो धीरे धीरे सुझा रहा है
मुझे वो मुझ से चुरा रहा है

*ख़ुमार-ए-शब=रात का नशा; रफ़ाक़त=साथ; क़ुर्ब-ए-जाँ=जीवन का सामीप्य; लताफ़त=आनंद; मो’जिज़ा=चमत्कार; लम्स=स्पर्श; पैकर=आकार (शरीर)

~ नाज़ बट

Dec 04, 2020| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
 

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