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Friday, September 15, 2017

बेनकाब चेहरे हैं

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बेनकाब चेहरे हैं,दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ

लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ

पीठ मे छुरी सा चाँद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बँध जाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ

~ अटल बिहारी वाजपेयी

  Sep 12, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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