देखो कि दिल-जलों की क्या ख़ूब ज़िंदगी है
परवाने जल चुके हैं और शम्अ' जल रही है
कहने को मुख़्तसर सा इक लफ़्ज़ है मोहब्बत
लेकिन उसी में सारी दुनिया छिपी हुई है
ख़्वाब-ए-हसीं से मुझ को चौंका दिया है किस ने
किस ने चमन में आ कर आवाज़ मुझ को दी है
देखो ज़रा फ़रोग़-ए-हुस्न-ए-बहार देखो
इक इक कली चमन की दुल्हन बनी हुई है
लाए बशर कहाँ से उस हुस्न की मिसालें
क़ुदरत जिसे बना कर हैरत में खो गई है
बुझती नहीं है सारे आलम के आँसुओं से
ये कैसी आग मेरे दिल में भड़क रही है
ऐ 'प्रेम' ज़र्ब-ए-सर से ज़िंदाँ को तोड़ डालो
पाबंदियों का जीना भी कोई ज़िंदगी है
~ प्रेम वरबारतोनी
Aug 26, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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