अमराई में चल छुपके
कुछ बात करें चुपके चुपके।
चल नव-किसलय को छूलेंगे
डाली पर बैठे झूलेंगे
इक पुष्प बनूँ इच्छा मेरी
हम हँसते हँसते फूलेंगे
चल सन्नाटों में देखेंगे
एक दूजे के मन में घुसके।
चल इंद्र धनुष हो जाएँ हम
सत रंगों में खो जाएँ हम
बस रोम रोम में साँसों के
कुछ प्रणय बीज बो आएँ हम
अरमान लुटाएँ चल चलके
आँखों में बैठे जो दुबके।
बिजली चमके लपके झपके
अंबर से जल टप-टप टपके
पर पवन उड़ा देता बादल
औ' विटप लगा देते ठुमके
अब हम भी किसी बगीचे में
चल मिलें कहीं छुपते छुपते।
~ प्रभु दयाल
Sep 17, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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