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Sunday, September 10, 2017

सुर सब बेसुरे हुए करूँ क्या

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सुर सब बेसुरे हुए करूँ क्या?

उतरे हुए सभी के मुखड़े
सबके पाँव लक्ष्य से उखड़े
उखड़ी हुई भ्रष्ट पीढ़ी से
विजय-वरण के लिए कहूँ क्या?

सागर निकले ताल सरीखे
अन्धों को कब आँसू दीखे
अन्धों की महफ़िल में आँसू
जैसी उजली मौत मरूँ क्या?

झूठी सत्ता की मरीचिका
आत्मभ्रष्ट कर रही जीविका
बौनों की बस्ती में बोलो
ऊँचे क़द की बात करूँ क्या?

~ रमानाथ अवस्थी


  Aug 29, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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