मां बहुत याद आती है
सबसे ज्यादा याद आता है
उनका मेरे बाल संवार देना
रोज-ब-रोज
बिना नागा
बहुत छोटी थी मैं तब
बाल छोटे रखने का शौक ठहरा
पर मां!
खुद चोटी गूंथती, रोज दो बार
घने, लंबे, भारी बाल
कभी उलझते कभी खिंचते
मैं खीझती, झींकती, रोती
पर सुलझने के बाद
चिकने बालों पर कंघी का सरकना
आह! बड़ा आनंद आता
मां की गोदी में बैठे-बैठे
जैसे नैया पार लग गई
फिर उन चिकने तेल सने बालों का चोटियों में गुंथना
लगता पहाड़ की चोटी पर बस पहुंचने को ही हैं
रिबन बंध जाने के बाद
मां का पूरे सिर को चोटियों के आखिरी सिरे तक
सहलाना थपकना
मानो आशीर्वाद है,
बाल अब कभी नहीं उलझेंगे
आशीर्वाद काम करता था-
अगली सुबह तक
किशोर होने पर ज्यादा ताकत आ गई
बालों में, शरीर में और बातों में
मां की गोद छोटी, बाल कटवाने की मेरी जिद बड़ी
और चोटियों की लंबाई मोटाई बड़ी
उलझन बड़ी
कटवाने दो इन्हें या खुद ही बना दो चोटियां
मुझसे न हो सकेगा ये भारी काम
आधी गोदी में आधी जमीन पर बैठी मैं
और बालों की उलझन-सुलझन से निबटती मां
हर दिन
साथ बैठी मौसी से कहती आश्वस्त, मुस्कुराती संतोषी मां
बड़ी हो गई फिर भी...
प्रेम जताने का तरीका है लड़की का, हँ हँ
फिर प्रेम जो सिर चढ़ा
बालों से होता हुआ मां के हाथों को झुरझुरा गया
बालों का सिरा मेरी आंख में चुभा, बह गया
मगर प्रेम वहीं अटका रह गया
बालों में, आंखों के कोरों में
बालों का खिंचना मेरा, रोना-खीझना मां का
शादी के बाद पहले सावन में
केवड़े के पत्तों की वेणी चोटी के बीचो-बीच
मोगरे का मोटा-सा गोल गजरा सिर पर
और उसके बीचो-बीच
नगों-जड़ा बड़ा सा स्वर्णफूल
मां की शादी वाली नौ-गजी
मोरपंखी धर्मावरम धूपछांव साड़ी
लांगदार पहनावे की कौंध
अपनी नजरों से नजर उतारती
मां की आंखों का बादल
फिर मैं और बड़ी हुई और
ऑस्टियोपोरोसिस से मां की हड्डियां बूढ़ी
अबकी जब मैं बैठी मां के पास
जानते हुए कि नहीं बैठ पाऊंगी गोदी में अब कभी
मां ने पसार दिया अपना आंचल
जमीन पर
बोली- बैठ मेरी गोदी में, चोटी बना दूं तेरी
और बलाएं लेते मां के हाथ
सहलाते रहे मेरे सिर और बालों को आखिरी सिरे तक
मैं जानती हूं मां की गोदी कभी
छोटी कमजोर नाकाफी नहीं हो सकती
हमेशा खाली है मेरे बालों की उलझनों के लिए
कुछ बरस और बीते
मेरे लंबे बाल न रहे
और कुछ समय बाद
मां न रही
~ अनुराधा
Sep 1, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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