रात रानी रात में
दिन में खिले सूरजमुखी
किन्तु फिर भी आज कल
हम भी दुखी
तुम भी दुखी!
हम लिए बरसात
निकले इन्द्रधनु की खोज में
और तुम
मधुमास में भी हो गहन संकोच में।
और चारों ओर उड़ती
है समय की बेरूखी!
हम भी दुखी
तुम भी दुखी!
सिर्फ आँखों से छुआ
बूढ़ी नदी रोने लगी
शर्म से जलती सदी
अपना 'वरन' खोने लगी।
ऊब कर खुद मर गए
जो थे कमल सबसे सुखी।
हम भी दुखी
तुम भी दुखी।
~ ओम प्रभाकर
Sep 13, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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