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Sunday, September 10, 2017

भरी है दिल में जो हसरत

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भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ
सुने है कौन मुसीबत कहूँ तो किस से कहूँ

जो तू हो साफ़ तो कुछ मैं भी साफ़ तुझ से कहूँ
तिरे है दिल में कुदूरत कहूँ तो किस से कहूँ
*कुदूरत=मैल

न कोहकन है न मजनूँ कि थे मिरे हमदर्द
मैं अपना दर्द-ए-मोहब्बत कहूँ तो किस से कहूँ
*कोहकन=फरहाद

दिल उस को आप दिया आप ही पशीमाँ हूँ
कि सच है अपनी नदामत कहूँ तो किस से कहूँ
*पशीमाँ=शर्मिन्दा ;नदामत=पछतावा

कहूँ मैं जिस से उसे होवे सुनते ही वहशत
फिर अपना क़िस्सा-ए-वहशत कहूँ तो किस से कहूँ
*वहशत=डर, पागलपन

रहा है तू ही तो ग़म-ख़्वार ऐ दिल-ए-ग़म-गीं
तिरे सिवा ग़म-ए-फ़ुर्क़त कहूँ तो किस से कहूँ
*ग़म-ख़्वार=सांत्वना देने वाला; दिल-ए-ग़म-गीं=दुखी दिल; ग़म-ए-फ़ुर्क़त=जुदाई का दुख

जो दोस्त हो तो कहूँ तुझ से दोस्ती की बात
तुझे तो मुझ से अदावत कहूँ तो किस से कहूँ
*अदावत=दुश्मनी, बैर

न मुझ को कहने की ताक़त कहूँ तो क्या अहवाल
न उस को सुनने की फ़ुर्सत कहूँ तो किस से कहूँ
*अहवाल=हालात

किसी को देखता इतना नहीं हक़ीक़त में
'ज़फ़र' मैं अपनी हक़ीक़त कहूँ तो किस से कहूँ

~ बहादुर शाह ज़फ़र


  Sep 2, 2017| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh

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