जब क़लम उठाता हूँ,
कोरे काग़ज पर,
लम्बी चोंच वाली एक चिड़िया,
बैठी पाता हूँ
चोंच वह खोलती नहीं,
फुदकती - बोलती नहीं,
हिलती है न डुलती,
चुपचाप घुलती है,
बताती न नाम है,
करती न काम है,
फिर भी सुबह को,
बना देती शाम है
यों ही, बस यों ही,
दिन डूब जाता है,
मन ऊब जाता है,
रात घिर आती है,
बात फिर जाती है
शुक्रिया,
ओ प्रकाश
शुक्रिया,
ओ क़लम-थामे हाथ की परछाईं
शुक्रिया,
ओ प्यारी
हत्यारी,
चिड़िया
शुक्रिया, शुक्रिया
तुम सबको
मेरा प्रणाम है
~ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
Aug 22, 2017| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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