आजु दिन कान्ह आगमन के बधाए सुनि ,
छाए मग फूलन सुहाए थल थल के।
कहैँ पदमाकर त्योँ आरती उतारिबे को ,
थारन मे दीप हीरा हारन के छलके।
कंचन के कलस भराए भूरि पन्नन के ,
ताने तुँग तोरन तहाँई झलाझल के।
पौर के दुवारे तैँ लगाय केलि मँदिर लौ,
पदमिनि पांवडे पसारे मखमल के।
~ पद्माकर
छाए मग फूलन सुहाए थल थल के।
कहैँ पदमाकर त्योँ आरती उतारिबे को ,
थारन मे दीप हीरा हारन के छलके।
कंचन के कलस भराए भूरि पन्नन के ,
ताने तुँग तोरन तहाँई झलाझल के।
पौर के दुवारे तैँ लगाय केलि मँदिर लौ,
पदमिनि पांवडे पसारे मखमल के।
~ पद्माकर
Aug 23, 2019 | e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
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