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Sunday, August 18, 2019

मेरा वतन हिन्दोस्ताँ

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मेरा वतन हिन्दोस्ताँ 
हर राह जिस की कहकशाँ
कोह-ए-गिराँ से कम नहीं जिस के जियाले नौजवाँ
ये वीर-ओ-गौतम की ज़मीं अमन-ओ-अहिंसा का चमन
अकबर के ख़्वाबों का जहाँ चिश्ती-ओ-नानक का वतन
शमएँ हज़ारों हैं मगर है एकता की अंजुमन
तहज़ीब का गहवारा हैं गंग-ओ-जमन की वादियाँ
मेरा वतन हिन्दोस्ताँ

तारीख़ की अज़्मत है ये जम्हूरियत की शान है
रूहानियत की रूह है सब मज़हबों की जान है
ये अपना हिन्दोस्तान है ये अपना हिन्दोस्तान है
हासिल यहाँ इंसान को हर तरह की आज़ादियाँ
मेरा वतन हिन्दोस्ताँ

जब दिल से दिल मिलते गए मिटते गए सब फ़ासले
ये आज का नग़्मा नहीं सदियों के हैं ये सिलसिले
सदियों से मिल कर ही बढ़े सब अहल-ए-दिल के क़ाफ़िले
इक साथ उठती है यहाँ आवाज़-ए-नाक़ूस-ओ-अज़ाँ
मेरा वतन हिन्दोस्ताँ

तारीख़ के इस मोड़ पर हम फ़र्ज़ से ग़ाफ़िल नहीं
क़ाबू न जिस पर पा सकें ऐसी कोई मुश्किल नहीं
जिस को न हम सर कर सकें ऐसी कोई मंज़िल नहीं
हाँ बाँकपन की शान से है कारवाँ अपना रवाँ
मेरा वतन हिन्दोस्ताँ

~ रिफ़अत सरोश

 Aug 18, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

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