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Friday, August 30, 2019

कौन सोचे



कौन सोचे कि
सूरज के हाथों में क्या है
हवाओं की तहरीर पढ़ने की
फ़ुर्सत किसी को नहीं
कौन ढूँडे
फ़ज़ाओं में तहलील रस्ता
कौन गुज़रे
सोच के साहिलों से
ख़्वाहिशों की सुलगती हुई रेत को
कौन हाथों में ले
कौन उतरे
समुंदर की गहराइयों में
चाँदनी की जवाँ उँगलियों में
उँगलियाँ कौन डाले
कौन समझे
मिरे फ़लसफ़े को
जल्द ही ये सफ़र ख़त्म होने को है
किसी बेनाम-ओ-निशाँ लम्हे में दिल चाहता है

दूरियाँ बस मिरी मुट्ठी में सिमट कर रह जाएँ
डोरियाँ ख़ेमा-ए-तन्हाई की कट कर रह जाएँ 

*बेनाम-ओ-निशाँ=पहचान रहित;  ख़ेमा-ए-तन्हाई= अकेलेपन का डेरा


~ असअ'द बदायुनी


 Aug 30, 2019 | e-kavya.blogspot.com
 Submitted by: Ashok Singh

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