धुँद में डूबी सारी फ़ज़ा थी उस के बाल भी गीले थे
जिस की आँखें झीलों जैसी जिस के होंट रसीले थे
May 20, 2015| e-kavya.blogspot.com
Submitted by: Ashok Singh
जिस की आँखें झीलों जैसी जिस के होंट रसीले थे
जिस को खो कर ख़ाक हुए हम आज उसे भी देखा तो
हँसती आँखें अफ़्सुर्दा थीं होंट भी नीले नीले थे
*अफ़्सुर्दा=उदास
जिन को छू कर कितने 'ज़ैदी' अपनी जान गँवा बैठे
मेरे अहद की शहनाज़ों के जिस्म बड़े ज़हरीले थे
*ज़ैदी-=मुस्तफ़ा ज़ैदी - मशहूर शायर;अहद=समय, युग; शहनाज़ों=संगीत स्वर
आख़िर आख़िर ऐसा हुआ कि तेरा नाम भी भूल गए
अव्वल अव्वल इश्क़ में जानाँ हम कितने जोशीले थे
आँखें बुझा के ख़ुद को भुला के आज 'शनास' मैं आया हूँ
तल्ख़ थीं लहजों की बरसातें रंग भी कड़वे-कसीले थे
~ फ़हीम शनास काज़मी
May 20, 2015| e-kavya.blogspot.com
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