Disable Copy Text

Saturday, May 16, 2015

गो ज़रा सी बात पर बरसों के



गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए
लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गए

मैं इसे शोहरत कहूँ या अपनी रूसवाई कहूँ
मुझ से पहले उस गली में मेरे अफ़साने गए

वहशतें कुछ इस तरह अपना मुक़द्दर बन गईं
हम जहाँ पहुँचे हमारे साथ वीराने गए
*वहशतें=पागलपन

यूँ तो मेरी रग-ए-जाँ से भी थे नज़दीक-तर
आँसुओं की धुँध में लेकिन न पहचाने गए
*रग-ए-जाँ=गले की नस; नज़दीक-तर=करीबी

अब भी उन यादों की ख़ुश-बू जे़हन में महफ़ूज है
बार-हा हम जिन से गुलज़ारों को महकाने गए
*महफ़ूज=सुरक्षित; बार-हा=बार बार

क्या क़यामत है के 'ख़ातिर' कुश्ता-ए-शब थे भी हम
सुब्ह भी आई तो मुजरिम हम ही गर्दाने गए
*कुश्ता-ए-शब=क़त्ल के लिए चुने गये ; गर्दाने=कबूलना

~ ख़ातिर ग़ज़नवी


  May 16, 2015| e-kavya.blogspot.com
  Submitted by: Ashok Singh 

No comments:

Post a Comment